FEAR PANDEMIC

Fear during the Covid pandemic

कोविड-19 आपदा और भय

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।

हे पार्थ, कायर मत बनो। यह तुम्हारे लिये अशोभनीय है, हे ! परंतप हृदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्यागकर खड़े हो जाओ, युद्ध करो।।कठिन परिस्थितियों में गीता ने सदैव मानव जाति का मार्गदर्शन किया है और जीवन कुरुक्षेत्र में संघर्ष को प्रेरित किया है।आज भी वैश्विक परिदृश्य एक महायुद्ध सा प्रतीत होता है। एक अदृश्य शत्रु के क्रूर आक्रमण ने वैवस्वत के वंशजों के अस्तित्व पर प्रहार किया है। इसके द्वितीय आक्रमण में इसने मानव की दो दुर्बलताओं भय एवं चिंता को अपने नियंत्रण में कर अपनी शक्ति में विस्तार किया है। नाभि से हृदय तक और हृदय से धमनियों के माध्यम से प्रत्येक मानव कोशिका तक पंहुच, उन्हें अचेतन कर यह भय रूपी दानव मन मस्तिष्क को जड़ बना देता है,और शेष रह जाते है चिंता व अवसाद जो कि किसी घनघोर अनहोनी की आशंका के अंधकार से अस्पष्टता को प्रबल कर असीम व्याकुलता प्रदान करते हैं।

आज की कठिन परिस्थितियों में सकारात्मक दृष्टिकोण ही एकमात्र आयुध है हमारे पास, जो आत्मबल को श्रेष्ठ कर संघर्ष की क्षमता प्रदान करेगा। कोरोना से पीड़ित व्यक्ति के हृदयाघात से होने वाली मृत्यु की दर अधिक है। मृत्यु का भय हम सभी को शारीरिक एवम मानसिक निर्बलता प्रदान कर रहा है। चिकित्सक भी यही मान रहे कि भयभीत व्यक्ति का ऑक्सीजन स्तर खतरनाक रूप से प्रभावित होता है,साथ ही प्रतिरक्षा पर भी गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भारत की धरती पर युद्धों का समृद्ध इतिहास रहा है।हमने अंततः विजय ध्वज लहराया है। आज हमें संसाधन की कमी से जूझते इस देश की शक्ति बनना है । लाभ हानि को अनदेखा कर,राजनैतिक, सामाजिक, वैचारिक भिन्नता को त्याग कर भयमुक्त आचरण प्रस्तुत करना है।
नकारात्मकता ने वास्तविक जीवन के साथ साथ आभासी दुनिया जैसे फेसबुक आदि पर भी अपना आधिपत्य कर लिया है, जिसने अस्पताल, संगरोध या एकांत में संघर्ष करते हमारे योद्धाओं को कुंठित कर दिया है। कोरोना से भी अधिक घातक यह मृत्यु का भय रोगी की जीवन ऊर्जा को समाप्त कर दे रहा है। फेसबुक ,न्यूज चैनल या अन्य विमर्श पटलों पर उड़ेला नैराश्य यदि किसी अन्य की मृत्यु का कारण बनता है , तो हत्या का भागी सिर्फ ,कोरोना नही हम सभी होंगे। योग और ध्यान से इस निराशा को समाप्त कर, थोड़ी सावधानी बरत हम इस भंवर से निकल सकते हैं।

कई माह से मैंने निरंतर किसी न किसी पीड़ित से बात कर उनके भाव को प्रबल बनाने हेतु प्रयास किया है। कई बार असत्य बोलकर भी उनकी जीवन ऊर्जा में वृद्धि का मार्ग ढूंढा है। निश्चित मानिए कोरोना पीड़ित व्यक्ति को जितना पैरासिटोमोल, भाप ,काढ़ा, जिंक और विटामिन की आवश्यकता है, उतनी ही आवश्यकता प्रेम ,उल्लास , सकारात्मकता ,योग , ध्यान एवम हमारे सहयोग की है।

मन के हारे हार है मन के जीते जीत । अतः सारी शिकायतें, दोषारोपण, अनिश्चितता को त्याग कर हमें लोगो को मानसिक बल प्रदान कर मानव जीवन रक्षार्थ प्रयासरत होना होगा, तब ही हम इस विषाणु के क्रूर वार को शिथिल कर इसे पूर्ण क्षय की ओर अग्रसर कर पाएंगे।

लेखिका
ऋचा राय