COVID POSITIVE कोविड पॉजिटिव

Writer

Richa Rai

भाग 1

धमाक !!!!!!!!!

                                     धक से कर गया कलेजा, मोबाइल उठाकर समय देखा तो रात के 2:12 हो रहे थे,  कैसी आवाज आई यह ,भय का बुलबुला हृदय की झील में बुदबुदा उठा , फिर से आवाज की प्रतीक्षा करते हुए मन में कई ख्याल आने लगे। बाहर बारिश हो रही थी। वर्षा घुंघरू पहने  किसी धीमी सी धुन पर नृत्य कर रही थी। वर्षा आई हो और समीर ना आए , उसका मन भी उतावला हो उठता है ..वर्षा को देख कर। अति उत्साह में कुछ ऐसे प्रदर्शन कर उठता है कि हम जैसों की नींद आधी रात में  टूट जाए और हम उठ बैठे किसी अप्रिय स्थिति के भय से।

                                      भय का हमसे कोई प्रिय संबंध कभी नहीं था , परंतु इधर अगस्त माह में इसने मेरा  पीछा कुछ ऐसे करना शुरू किया कि हमें भी इसके भ्रम जाल में बंधा होने सा प्रतीत होने लगा था। प्रातः आंख खुली तो पवन नींद में ही कुछ बड़बड़ा रहे थे , माथा भट्ठी के समान जल रहा था, पसीने की कुछ बूंदें कान के पास निकल आई थी। कुछ अनहोनी की आशंका ने क्षण भर को मुझे जड़ कर दिया और  बस वही भय से प्रथम बार आमना सामना हुआ मेरा।

                                  संपूर्ण विश्व कोरोना के प्रचंड वार से पीड़ित हो निरन्तर शिथिल हो रहा था, प्रकृति का तांडव रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था, इस बार तो यह कुछ ऐसी रुष्ट हुई है कि मानने को तैयार ही नहीं ।  सही भी है, अवसर पर अवसर दिए, कई चेतावनी दी , परंतु मजाल है  मनुज नामक जीव पर  कोई भी प्रभाव पड़ा हो। वह तो सृष्टि का एकमात्र ऐसा प्राणी है जो मात्र स्वयं के लिए जीता है। प्रकृति ने भी ठान लिया है कुछ ।  इस बार तो ऐसे विपदा रूपी शस्त्र से प्रहार किया है, मानव के अस्तित्व पर कि बोलती बंद हो गई विश्व के इस श्रेष्ठतम जीव की। 

                                       पवन के खांसने की आवाज आई।  ओह !! बुखार, खांसी, छींक तो भय के प्रिय साथी बन चुके हैं आज, इनकी आहट भी रक्त के स्थान पर भय को शिराओं में प्रवाहित करने लगती है,       परन्तु हम भी शीघ्र हताश तो होने वाले नहीं थे। हमने अपने ढीठ मन की सुनी,। दांत निकलवा कर आए थे  अस्पताल से न,  बस उसी से बुखार आ गया है, यही कहकर सभी के मन को शांत करने का प्रयास किया मैने। बच्चों की सुरक्षा के दृष्टिगत पवन ने अपने आप को दूसरे एक कमरे तक सीमित कर पृथक कर लिया था।  पेरासिटामोल गटक कर बोले तुम सही कह रही हो यह दांत की वजह से ही हुआ है। तुलसी ,अदरक ,दालचीनी ,हल्दी, लौंग सब डाल दिया चाय में… कितना भी कहो भय ने अपना कार्य तो प्रारंभ कर ही दिया था।हम दोनों ही हंस के बात को टालने का प्रयास कर रहे थे। स्वास्थ्य पहले से अच्छा लग रहा है , पवन ने कहा। हमने अवकाश लेकर आराम करने की सलाह दी परंतु कुछ विशेष पत्रावलिओं को निपटाने की बात कहकर चले ही गए कार्यालय।

                                झाले मार , झाड़ू लगा, घर धोने लगी , कुछ ज्यादा ही सफाई कर डाली थी उस दिन मैंने। मार्च से ही घर के सारे कार्य स्वयं करती आ रही थी, लॉक डाउन में कामवाली को आने को मना कर दिया था, और पगार के लिए कह रखा था कि 1 को आ कर लेते जाया करें, दो  बच्चे थे उसके, पति सफाई कर्मी था, महीनेवार तनख्वाह नहीं मिलती थी उसको। मेरे ही सर्वेंट क्वार्टर में रह रही थी 1 वर्ष से। हिचकिचाते हुए दो बार तो आकर ले गई रुपए परंतु उसका आत्मसम्मान उसे बिना काम के पैसे लेने को मना कर रहा था शायद, बस लॉकडाउन समाप्त होते ही समान समेटी बच्चों सहित गांव चली गई। ठीक ही है ,अपना कार्य स्वयं करने से भी एक अनोखी संतुष्टि प्राप्त होती है। 

                             दरवाजे की घंटी बजी अभी कौन आया सोचते हुए हम मास्क ढूंढने लगे , कोरोनाकाल में तो अब सामाजिक दूरियों में विस्तार के आवाहन ही सुनाई देते  हैं  , कहीं किसी के घर आना जाना तो स्वप्न के समान हो गया है। जीवन शैली पूर्णतः परिवर्तित हो गई है। लोग फोन तक सीमित हो गए हैं। दरवाजा खोला तो पवन घबराए से अंदर आए बुखार फिर बढ़ गया है,  सोचा घर ही चलता हूं यहां तो कई लोग मिलने आते रहते हैं , पता नहीं कैसा बुखार है यदि कोई और बात है तो संक्रमण फैल सकता है।हमने तुरंत बर्फ का पानी लिया और सिर पर पट्टियां रखना शुरू कर दिया बच्चों को उनके कमरे से निकलने को पूर्णतया मना कर दिया गया।

                         संस्कृति समझदार थी उसने स्थिति को भाप लिया, थोड़ी चिंता ,थोड़ा भय ,थोड़ी घबराहट लिए छोटी इप्शिता को कई तरह के खेलों में उलझा कर मनाने लगी।बार-बार हाथ धोकर, सैनिटाइज कर मैं कभी पवन , कभी बच्चों के कमरे तक दौड़ लगा रही थी । शाम होते होते मुझे भी  हल्की थकान और कमजोरी घेरने लगी थी , सुबह से आज कुछ ज्यादा ही काम पड़ गया था। कमरे में देखा पवन सो रहे थे , बुखार कम था, बच्चे फोन पर कुछ देख रहे थे, टीवी चलाकर सोफे पर बैठी कि कुछ मन बदलेगा, पर घबराहट सी होने लगी, कमजोरी बढ़ती जा रही थी, मन में आया ताप देखते है शरीर का , 103 !! … यह क्या। समझ कुछ भी नहीं आ रहा था क्या करें 1 से 2 घंटे में ही मैं भी चेतना विहीन सी बिस्तर पर गिर पड़ी थी, पवन का बुखार फिर बढ़ रहा था।

बच्चे कमरे में बंद बंद घबरा से गए थे भूख लगी थी उन्हें , संस्कृति ने धीरे से कमरे में झांका  । 

मम्मी पापा क्या हुआ आप लोगों को ? 

कुछ नहीं बेटा जाओ आप मैगी बना कर खा लो , इधर मत आना आप दोनों । 

कोरोना तो नहीं हो गया मम्मा !!? 

                           हम दोनों ने एक दूसरे के चेहरे को देखा ।  नहीं बेटा वायरल है , ठीक हो जाएंगे बस सुरक्षा के दृष्टिगत आप दोनों अपने कमरे में ही रहो।  कह तो दिया परंतु शरीर धीरे धीरे साथ छोड़ता सा नजर आ रहा था|  मुझे अब कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था, आंख खुल भी नहीं पा रही थी। पवन और बच्चे क्या कर रहे कहां हैं कुछ पता नहीं चल रहा था। हां ह्रदय में व्याकुलता थी बच्चों की चिंता सता रही थी ।

                        बहुत तेज प्यास लगी थी , आंख खुली तो रात के 12:00 बज रहे थे ,5- 6 घंटे कैसे बीत गए कुछ समझ नहीं आ रहा था । मेरे पास कोई भी नहीं था , सिर पर एक गीला कपड़ा रखा था,  उठाया तो इप्शिता का टी-शर्ट था । कमरे के बाहर से कुछ आवाज आ रही थी। पवन टीवी चला कर सोफे पर ही सो गए थे , बच्चे जगे थे, संस्कृति इप्शिता को कहानी सुना रही थी। उनके दरवाजे के बाहर ही बैठ गई मैं,  बेटा कुछ खाया आप दोनों ने। संस्कृति उठी तो उसे आने को मना कर दिया , दोनों बस चुपचाप दूर से मुझे  देख रही थी , तभी इप्शिता गुस्से में बताने लगी, मम्मा आपको क्या हो गया है । दीदी को तो कुछ भी समझ नहीं आता, जब भूख लग रही है मुझे तो वह बिस्किट दे दे रही है। आप जानती हो ना मैं चावल नहीं खाती । फिर भी इसने आज चावल दाल बनाया । मुझे आपके पास नहीं जाने दे रही है। मम्मा!!!..

                        मुझसे कुछ भी नहीं कहा जा रहा था ,चक्कर से आने लगे , पानी लिया और फिर जाकर बिस्तर पर गिर गई। पता नहीं संस्कृति ने कैसे सम्हाला नटखट इप्शिता को। ओह!! कुछ घंटों में ही ऐसी स्थिति बन आई थी, जैसे सदियों से रुग्णावस्था ने घेर रखा हो।

                        विवाह के उपरांत एकल परिवार में ही रहे थे , परंतु जब भी कोई विकट स्थिति आती थी हमेशा विचार यही आता कि काश कोई अपना होता जो बच्चों की देखभाल कर लेता । आज स्थिति थोड़ी भिन्न थी,  हम दोनों ही एक साथ बीमार हो चले थे, और तब जब कोरोना का भय समग्र विश्व को त्रास दे रहा था। 

                       सुबह तक मेरी स्थिति और भी बिगड़ गई , पवन तो ठीक लग रहे थे परंतु मेरी तबीयत लगातार खराब हो रही थी,  कुछ खाकर दवा लेनी है तुम्हे।  पवन ने फोन पर ही चिकित्सक की सलाह से दवाई मंगा ली थी।  ब्रश उठाया ही था , घबराहट होने लगी थी , शीशे में धुंधला सा दिख रहा था , अचानक से अंधेरा बढ़ने लगा, आभास हो रहा था चारों तरफ जल ही जल है , बस थोड़ी देर में डूब जाऊंगी मैं, स्वयं के रक्षार्थ पूरी  शक्ति लगाई , तो आंख खुल गई। कुछ क्षण की तंद्रा समाप्त हुई , पता चला नल से पानी गिर रहा था। ब्रश दूर गिरा था,  स्नानघर में जमीन पर ही गिरी पड़ी थी मैं । चीखना चाह रही थी पर आवाज मुंह में ही रह जाती, तभी ईपू की आवाज आई, दीदी!! पापा !! , देखिए मम्मा को यह क्या हुआ , वह रोने लगी थी,  फिर आंखें बंद होती गईं मेरी  , जैसे नींद आ रही हो।   

 

                                

                                           चारों तरफ शांति थी , घड़ी पर नजर पड़ी 8:15 हो रहे थे उठ कर बैठी , कुछ ठीक सा लग रहा था , सिर पर से गीला टी शर्ट हटाया , पानी पीया   पवन ने कहा कोरोना जांच करा लेते हैं , मेरी  मनः स्थिति ऐसी थी कि कोई भी विचार नहीं आ रहा था।  दोनों बच्चे  दूर खड़े मुझे देख रहे थे। भय ने उन्हें भी अपने आगोश में लेना प्रारंभ कर दिया था। मैंने मुस्कुरा कर कहा अब सब ठीक है। बच्चों के लिए उठना चाह रही थी। लंबी लंबी श्वास भरकर स्वयं को प्रोत्साहित कर रही थी। 

                                         फोन उठाया तो एक अपरिचित संदेश पर नजर पड़ी आज दोपहर 12:00 बजे के बाद राष्ट्रीय पुरस्कार हेतु आप का साक्षात्कार गूगल मीट पर संपन्न होगा, आप निम्न बिंदुओं पर पावर पॉइंट प्रस्तुतीकरण तैयार कर सम्मिलित होना सुनिश्चित करें। अब यह भी अभी ही..  पुरस्कार हेतु स्वयं अपनी उपलब्धियां गिनाने की परंपरा की मै घोर विरोधी थी,  परंतु फिर भी आवेदन की अंतिम तिथि तक असमंजस की स्थिति में ही सही आवेदन तो कर ही दिया था ।   इसके पीछे भी एक कहानी थी , 1 माह  से प्रत्येक दिन कोई न कोई मित्र सलाह दे ही देता था कि मेरे आवेदन करने से उनका भी मार्ग प्रशस्त होगा, विशिष्ट तरीके से विद्यालय पर शिक्षण कार्य करने वाले आम अध्यापक भी भविष्य में पुरस्कार प्राप्त करने की सोच सकेंगे, विभाग के चक्कर काटने वालों का वर्चस्व कम होगा , वास्तविक कार्य को सम्मान प्राप्त होगा तो अन्य अध्यापकों को कार्य करने की प्रेरणा भी प्राप्त होगी वगैरह वगैरह.. मुझे नहीं पता था कि पुरस्कार की वास्तविक स्थिति यदि अन्य कारकों से प्रभावित होती है, तो मुझसे उन्हें  क्यों उम्मीद थी  । शायद मेरा विद्रोही स्वभाव , गलत को गलत कहने में संकोच ना करना ही उन्हें प्रेरित कर रहा था , हालांकि यहां पर स्वयं अपने मुख से इन बातों को कहने में मुझे हिचकिचाहट हो रही है। 

                         खैर ,जो भी हो अब तो पग बढ़ा दिया था , मार्ग पर चलना ही था। कर्म से पीछे न हटने एवम् कर्म में स्थित रह, हार जीत सब कुछ ईश्वर को समर्पित करने की सलाह तो द्वापर में स्वयं ईश्वर के मुख से प्राप्त हुई है , पृथ्वी वासियों को।

                       कोरोना की जांच करा कर आए और 10 मिनट पानी के नीचे बैठकर अपनी शिथिल  हो रही स्थिति को किस प्रकार ठीक करें, किस प्रकार साक्षात्कार के लिए स्वयं को तैयार करें , सोचने लगे। जांच कराने गए थे तो वहां भी नई स्थिति उत्पन्न हो गई  ।  कोरोना की जांच कराने जा रहे लोगों को बैरिकेडिंग के माध्यम से दूर ही रखा जा रहा था , जो सर्वथा उचित था  परन्तु पंजीकरण के लिए बैठा युवक अत्यंत अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहा था।  उसके कुसंस्कारी  व्यवहार से  लोगों की  भावना आहत  हो रही थी ।  मेरे शिथिल शरीर ने भी  तत्काल उसका विरोध किया। पता नहीं क्या क्या कहा मैंने, वह पहले तो बुरा बोलने का प्रयास किया, लेकिन फिर अचानक से एकदम चुप हो गया। बगल में पड़ी बेंच पर लेट गई मैं , बोलने से रही सही ऊर्जा भी समाप्त हो गई थी। हां अच्छा यह हुआ कि अब लगभग सभी कार्मिकों की भाषाशैली अत्यंत सुखद , सुंदर , विनम्र हो गई थी। 

                              “बच्चों तुम्हें पता है !! जब भी हम बहुत बीमार हो,  बहुत कमजोर महसूस कर रहे हो, हिलने की भी स्थिति ना हो तभी आग लग जाए , छत पर से कोई सांप लटका दिख जाए या भूकंप आ जाए क्षण भर में ही एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है शरीर में, व्यक्ति उठ कर बैठ जाता है दौड़ कर अपने प्राण को बचाने का पूर्ण प्रयास करता है , यही है उसके शरीर में गुप्त रूप से स्थित ऊर्जा जिसे गुप्त ऊर्जा भी कहते हैं । संकट की स्थिति में यही उर्जा मनुष्य को बल प्रदान करने को अवश्य उत्पन्न होती है, परंतु दृढ़ मन मस्तिष्क से इसका आवाहन तो व्यक्ति को ही करना होता है। ”  स्मरण हो आया कक्षा 12 में जीव विज्ञान के गुरुजी की कही कुछ बातें। बस आंखें मूंद ली मैंने तेज तेज हंसना प्रारंभ किया और थोड़ी ही देर में एक नवीन जोश के साथ उठ कर लैपटॉप खोलकर बैठ गई, बिंदुवार प्रस्तुतीकरण तैयार करने को। 11:30 बजे तक सब कुछ तैयार था। बस बाल संवारे, बिंदी लगाई, काजल लगाया उल्टी पुल्टी साड़ी लपेटी और फोन उठा साक्षात्कार हेतु कॉल की प्रतीक्षा करने लगी, बच्चे हमें दूर से ऐसे देख कर प्रसन्न हो रहे थे ।  

                                संस्कृति ब्रेड मक्खन और चाय लेकर आई परंतु मुझसे नहीं खाया गया । साक्षात्कार प्रारंभ हुआ मेरी आवाज पूर्व की भांति हो आई थी , सभी प्रश्नों का तथ्यात्मक और संतोषजनक उत्तर देने में कठिनाई तनिक भी नहीं हुई , अंततः संतोषप्रद साक्षात्कार संपन्न हुआ फोन रखा और इस जोश के साथ थोड़ा और  बलशाली होने का प्रयास किया परन्तु उसकी उतनी ही सीमा थी शायद, शरीर में शिथिलता का प्रवेश धीरे धीरे होने लगा और मैं फिर से गिर पड़ी। 

                              दिवाकर थका मांदा घर को लौट रहा था , पक्षी भी अपने नींड तक लौट रहे थे। घर में ही लगे नीम के पेड़ पर चहचहाट बता रही थी  कि छोटे छोटे बच्चे अपनी मां से लिपटे कुछ भोजन देख प्रसन्न हो रहे होंगे।  संस्कृति सूप लिए मुझे जगा रही थी । आंख खोली तो मास्क लगाए , पसीने से लथपथ, बाल बिखरे हुए, हाथों में पट्टी बांधे रुआंसी खड़ी थी वह। इप्शिता भी मास्क ठीक करती हुई दूर खड़ी मुझे देख रही थी , उसका चेहरा भी भाव शून्य हो गया था। दोनों ही परेशान लग रही थी।  

                          पवन किसी से फोन पर बात कर रहे थे । दोनों बच्चे हाथ सैनिटाइज कर दूर खड़े हो गए , मम्मा पापा आप दोनों अनुलोम विलोम कीजिए, श्वास भरकर एक मिनट तक ओम का उच्चारण कीजिए।  कोविड मरीज ऐसा नहीं कर पाते हैं । हम दोनों ने बच्चों के द्वारा प्राप्त सभी निर्देशों का अक्षरशः पालन किया। मैं बावन सेकंड एवम् पवन 1 मिनट से ज्यादा ओह्म उच्चरित कर पाए। कुछ क्षण के लिए कुछ सकारात्मक सा लगा, बच्चे नन्हे शावकों की भांति चहक उठे। आप दोनों एकदम ठीक हैं , रामदेव बाबा बता रहे थे कि जो ओम का उच्चारण 1 मिनट तक कर ले,उसे कोरोना नहीं होता। अब चलिए कपालभाती भी करिए, फिर सूक्ष्म व्यायाम… किसी तरह हमने 10 मिनट तक शरीर पर नियंत्रण रखा फिर अचानक ही अचेतन से हो गए। 

                    खांसी धीरे धीरे दस्तक देने लगी थी,  जब भी खांसी आती , खूब सारा कफ भी निकल रहा था। थोड़ी देर बाद गूगल अध्ययन कर संस्कृति दूर से ही चीखी, मम्मा चिंता ना करिए आपको कोरोना नहीं है, कोरोना में सूखी खांसी होती है । आपको और पापा को सामान्य वायरल फीवर है। कोरोना संबंधी विशिष्ट ज्ञान फेसबुक , व्हाट्सएप , गूगल पर तो भरा पड़ा है । कई लोगों ने दवा की खोज का दावा भी कर रखा है , एक भ्रम जाल बिछा है चारो तरफ, किसी को कुछ भी स्पष्ट नहीं, परन्तु ज्ञान कि गंगा भिन्न श्रोतों से निरन्तर प्रवाहित हो रही है । आंखें बंद कर मै उसकी बातें सुन रही थी। बहुत परेशान थी दोनों , कुछ खाने को भी सही प्रकार से नहीं मिल रहा था उन्हें। मैंने सोचा कुछ खाना बना दूं परंतु , हम दोनों ही बहुत कमजोर महसूस कर रहे थे , उठ भी नहीं पा रहे थे।  धीरे धीरे सांस लेने में भी कठिनाई प्रतीत होने लगी थी ,हालांकि पवन बार-बार यही कहें कि वह ठीक है लेकिन उनके व्यवहार से ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था।

 पापा मम्मा खिचड़ी खा लीजिए।

 कैसे बनाई हो बेटा ?

 मम्मा नानी से पूछ पूछ कर खिचड़ी और चीला बनाया थोड़ा सा खा लीजिए आप।

                                छनाक!! कुछ शीशा फूटा था दूसरे कमरे में , इप्शिता चीखने लगी थी, संस्कृति दौड़ कर गई, अरे कैसे टूटी गिलास तुम्हे चोट तो नहीं लगी, चलो किनारे हो जाओ  , कोई बात नहीं टूट गई तो टूट गई। संस्कृति बहुत समझदार हो गई थी एक ही दिन में। पुनः आवाज धीमी हो गई,  मेरी चेतना जाने लगी।

रात 11:30 बजे फोन घनघनाया।

क्या !!???

अच्छा  !!!!

आपने स्वयं देखी रिपोर्ट !!?

दोनों ही लोग! !??

ऋचा राय! !!???

अच्छा!! धन्यवाद !! जी जी !! अरे नहीं हम तनाव नहीं ले रहे।

 कोविड पॉजिटिव !!!!!!!!!!!!!!!!

                                          हम चुप थे, देखा संस्कृति भी पर्दे के पीछे खड़ी सुन रही थी।  भय अब हृदय से निकलकर संपूर्ण घर में स्वच्छंद भ्रमण करने लगा था। इप्शिता से सारी बातें छिपा दी गई । संस्कृति से बस यही कहा बेटा आपको छोटी का ध्यान रखना है।बच्चों को जरूरी सामान लेकर उनके कमरे तक सीमित कर दरवाजा बंद करा दिया था । पता नहीं क्या खाए थे दोनों । पूरा घर अस्त व्यस्त हो गया था अब क्या करेंगे मन मस्तिष्क सवालों से घिर गया था और तन निरंतर शिथिल होता जा रहा था बुखार तेज था पवन उठ कर बैठे थे, परंतु हमसे तो हिला भी नहीं जा रहा था गुप्त ऊर्जा का आवाहन करते करते मन थक गया था । बहुत प्रयास पर सिर्फ मुख से एक वाक्य निकल पाया..        हे !!! कृष्णा !! मेरे बच्चे!!!

                                          चेतना आंख मिचौली खेल रही थी। सिर पर कुछ रखा किसी ने आंख खुली तो संस्कृति बर्फ की पट्टी रख रही थी हम चिल्ला पड़े तुम क्यों आई हो मेरे पास। मम्मी आपको बहुत तेज बुखार है , पानी की पट्टी रखकर कपड़े बदल , हाथ सैनिटाइज कर लूंगी। देखिए मास्क भी लगा रखा है। मम्मा आप ठीक हो जाइए । मैंने उसे झिड़क दिया,  घड़ी देखी तो रात के 3:10 हो रहे थे। वह बोलती जा रही थी,  मम्मा इपू अभी अभी सोई है , पापा भी अभी ही लेटे हैं । मम्मा !! पापा भी ठीक नहीं है । 

                                         हमने इशारे से उसे दूर जाने को कहा । बेटा जीवन में जब भी कठिनाई आती है , हमे संघर्ष करना होता है। सकारात्मक रहो परन्तु किसी भी संकट से निपटने हेतु तैयार भी रहो,  याद है प्रिंसी !!!  तुम्हारी दोस्त । तुम हम दोनों से दूर रहो बेटा, हम स्वस्थ जरूर हो जाएंगे परन्तु यदि कोई अनहोनी भी होती है , तो मेरी बिटिया रानी सब कुछ सम्हाल लेगी। स्वयं को भी , और इप्शिता को भी। पता नहीं मैंने ऐसा क्यों कहा उससे , बच्ची को बहुत कष्ट हुआ , वह आंसू छुपाते हुए भाग गई। 

                                    प्रिंसी ऊपरवाले घर में ही रहती थी । मम्मी पापा की इकलौती लाडली। सब कुछ था उसके पास परन्तु ईश्वर ने उसके जीवन में बहुत संघर्ष लिखा था। उसकी मम्मी को कैंसर से अपने पास बुला लिया, और कुछ महीने में ही पापा को सड़क दुर्घटना में । मै अस्पताल में उसके साथ ही थी उस समय।बहुत कठिनाई से वह पल बीते पर बीत ही गए। आज कभी व्हाट्सएप पर उसकी हंसती हुई डीपी देखती हूं तो निश्चिंत हो जाता है मन । समय बहुत बलवान है,  सब कुछ ठीक कर ही देता है।

क्रमशः….